हर शहर समय के साथ बदलता है, बदलना भी चाहिए। दस साल के आसपास हो गए राजगढ छोडे हुए। कभी दो सप्ताह में कभी महीने में आना होता है। इस बार तीन महीने के बाद गया तो एक साथ बहुत सारे बदलाव दिखे।
स्टेशन से घर तक के रास्ते में यही सोच रहा था कि देखते देखते राजगढ कितना बदल गया है। स्टेशन पर एक दो तांगे दिख जाते थे उसकी जगह अब ऑटो ने ले ली है। पहले घोडे दिखते थे, तांगे में बैठने का सुकून अलग होता था।
दुकानों के साइन बोर्ड बदल गए। दीवारों पर लगे पोस्टर्स की जगह फलेक्स ने ले ली।
अपना सैलून जिस पर पापा के साथ अंगुली पकडकर जाते थे वह अब जनता हेयर डेसर डेसर से यश मेन्स पार्लर हो गया है। शायद जमाने का तकाजा है हेयर डेसर नाम शायद सूट नहीं करना। दुकानदार को भी शर्म आए और कटिंग कराने वाले ग्राहक को इसलिए नाम बदल दिया है, जमाने के साथ टेंडी।
गोल चक्कर पर जहां कचोरी वाले ही खडे रहते थे अब ठेलों पर छोले भटूरे, बर्गर, छाछ राबडी भी है।
दिनभर पानी देने वाले नल अब एक एक बूंद टपकने को तरस रहे हैं। जिन लोगों को कभी पानी भरते नहीं देखा वो पानी के लिए मशक्कत कर रहे थे। पहले शायद पानी भरना महिलाओं का काम था, जो किल्लत के कारण मशक्कत और जुगाड करने के लिए पुरुषों के हिस्से में आ गया है।
अभी तो घर पहुंचा ही था
सोचा इतने सारे बदलाव सुबह के पंद्रह मिनट के घर तक के सफर में देख लिए इन्हें ही लिख दिया जाए, काफी समय से इस ब्लॉग पर कोई एंटी नहीं हुई।
बाकी बाद में
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Kya baat hai, nicely pointed out all the fact
ReplyDeletebadlav hi to jindagi hai ...kuch accha kuch bura...pr badlna to hai hi
ReplyDeleteyr rajiv badlav kutch bhi aaye ho lekin tu aaj bhi vo hi h jo 10 yrs pahle tha...
ReplyDeleteyou are correct,
ReplyDeleteI am feeling same difference in my hometown AGRA.