Saturday, October 24, 2009

अब तांगे नहीं दिखते

अब अपने राजगढ से तांगे (घोडागाडी) गायब हो गए हैं। उनकी जगह ऑटो ने ले ली है। यूं तो समय के साथ बदलाव जरूरी है, पर परिवहन का पुराना साधन गायब हो गया है। यह सोचकर दुख होता है। मुझे याद है बचपन में तीन जगह तांगे दिखाई देते थे।
पहला राजगढयहां स्‍टेशन से गोल मार्केट तक का तीन रुपए में तांगे के सफर में मजा आता था। बाद में यह किराया पांच रुपए हो गया। तांगे चार-पांच से घटकर एक ही रह गया। और 2008 आते आते तांगे खत्‍म हो गए। इनकी जगह ऑटो ने ले ली है, बेशक ये जल्‍दी पहुंचा देते हैं। पर जो मजा तांगे में आता था वह ऑटो में नहीं।
तांगे वाली दूसरी जगह थी मंडावरयहां के बस स्‍टैंड से हमारे पैतृक गांव गढ हिम्‍मतसिंह तक का तीन किलोमीटर का सफर तांगे में करने में मजा आता था। कई बार तो रास्‍ते में एक ढलान वाली जगह पानी भरे होने से तांगे को पार करने में मजा आता था। मुझे मेरे बडे भैया बताते हैं कि जब मां के साथ जन्‍म के बाद जब मैंने पहली बार सफर किया तो वह भी तांगे में किया। बचपन में उन्‍होंने कई बार कहा कि मम्‍मी तुम्‍हे तांगे में अस्‍पताल से लाई।
तीसरी जगह थी श्रीमहावीरजीमैं दीपावली के अगले दिन कई साल बाद जब जैन तीर्थ क्षेत्र श्रीमहावीरजी गया तो मुझे वहां मंदिर के बाहर एक तांगा देखकर सुकून पहुंचा। यहां तांगा अभी भी मौजूद है। हां बस इसका कारण दूसरा है। तीर्थ यात्री बडे बडे शहरों से बडी गाडियों में आते है तो वे अपने बच्‍चों का जी बहलाने के लिए गाडी छोड तांगे में सफर करते है। खैर इससे तांगेवाले की रोजी रोटी भी चल रही है और मुझे ब्‍लॉग के लिए तांगे का फोटो मिल गया वर्ना मैं कब से सोच रहा था तांगे पर लिखने के लिए।

Thursday, October 8, 2009

एक और राजगढ भी है




राजगढ नाम ही ऐसा है। सभी जानते है कि अपने अलवर जिले के राजगढ के अलावा राजस्‍थान के ही चूरू जिले में भी एक राजगढ है। एक मध्‍यप्रदेश में और एक हिमाचल में ही।
पर ये राजगढ वो है, जिसके बारे में हमने न तो सुना न ही कभी पढा। चूरू वाले राजगढ का किस्‍सा जब पढते थे तो हर साल सुनते थे। कभी बोर्ड की मार्कशीट दूसरे राजगढ में चली जाती तो कभी दूसरे राजगढ की यहां आ जाती।
पर हाल ही में मैं भीलवाडा के पास ही एक जैन तीर्थक्षेत्र चंवलेश्‍वर पार्श्‍वनाथ गया। रास्‍ते में एक और छोटा सा गांव दिखा। मैंने कार से बाहर देखा तो एक झोंपडीनुमा पोस्‍ट आफिस पर राजगढ का बोर्ड लगा था।
मैंने मोबाइल निकालकर गांव में कार देखकर दौडे बच्‍चों और पोस्‍ट आफिस की तस्‍वीर ली और आगे वहां से निकल लिए।
पर मुझे इस बात का बडा अचरज हुआ कि राजस्‍थान में ही यह तीसरा राजगढ भी है। आपको भी किसी और राजगढ की जानकारी हो तो जरूर बताइएगा।

Friday, October 2, 2009

अपना प्यारा राजगढ़

नमस्कार दोस्तों आज पहली बार इस ब्लॉग पर मैं कुछ लिखने जा रहा हु. लेकिन लिखने से पहले मैं अपने बारे में कुछ बता देना चाहता हु, मेरा नाम कुलदीप सैनी है मैं सराय मोहल्ले में रहता हु फिलहाल मैं जयपुर में रह रहा हु और यहाँ से एनीमेशन का कोर्से कर रहा हु ,
जब मुझे पता चला की राजगढ़ का कोई ब्लॉग है तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई और मैंने तुंरत इन्टरनेट पर इसे खोल कर देखा और इसे ज्वाइन कर लिया इस ब्लॉग के लिए मैं राजीव जी को तहे दिल से धन्यवाद देना चाहता हु ,
मैं राजगढ़ का रहने वाला हूँ , राजगढ़ मेरी जन्मभूमि है और मैं इससे बहुत प्यार करता हूँ और मैं ही क्या वो हर व्यक्ति जो राजगढ़ का निवासी है वो राजगढ़ से बहुत प्यार करता है और करे भी क्यों नहीं ये है ही इतना सुन्दर , चारो और से पहाडियों से घिरा हुआ बाग़, बावडिया मंदिर झरने और बहुत से मनोहर द्रश्य जिन्हें देखकर मन आनंदित हो जाता है

मुझे भी राजगढ़ की बहुत याद आती है जब कभी भी मैं घर जाता हूँ तो वह से आने का दिल ही नहीं करता मगर मजबूरी है की आना पड़ता है अब तो मैं दिवाली पर राजगढ़ जाऊँगा. अपने पुराने दोस्तों से मिलूँगा कुछ दोस्त तो वही राजगढ़ में ही रहते है और कुछ जो बाहर रहते है वो भी दिवाली पर घर आयेंगे, दोस्तों से मिलेंगे घूमेंगे , फिरेंगे , गप्पे लड़ायेंगे , तो दोस्तों मिलते है दिवाली पर अपने प्यारे शहर राजगढ़ में तब तक के लिए अलविदा, हैप्पी दिवाली