Wednesday, May 18, 2016

बस कंडक्टर



अलवर, मालाखेड़ा, राजगढ़ हां जी बैठो बैठो जल्दी करो जल्दी करो हे भाईसाहब कहा जाओगे !

                             उसकी इस आवाज़ ने ना जाने क्यूँ मुझे उसकी ओर देखने पर मजबूर किया! शायद उसकी आवाज़ में जो जोश था वो ही मेरा ध्यान उसकी ओर ले गया! मैं उसी बस में बैठा हुआ था और अपनी सीट पर आँखें बंद कर सोने की कोशिश कर रहा था! लेकिन उसकी आवाज़ सुनकर मैने अपनी आँखें खोलकर ज्यों ही उसकी ओर देखा तो बस देखता ही रह गया उसकी वो जोश भरी आवाज़ जो सवारियो को बिठाने के लिए वो लगाता था, जैसे कि इस आवाज़ में जादू हो!
                            जोश भरी आवाज़ और शकल पर शिनक्त परेशानी और दिन भर कि थकावट फिर भी काम करने का उतना ही जोश हर बार! वो इनसान है या कोई अलौकिक शक्ति ! यही बात बार बार मेरे दिमाग में आए जा रही थी!
                             मध्यम कद का वो सामान्य शरीर वाला आदमी जिसके थोड़ा पेट बाहर निकला हुआ था! सर पर तौलिया लिपटा हुआ मानो यही उसकी पगड़ी हो हाथ में सिक्कों से भरा हुआ बैग टिकटों का एक रजिस्टर और कान के ऊपर लगा हुआ एक पेन! मानो जैसे कि किसी सिपाही को हथियारों से लैस करके युद्ध में भेजा हो!
बस चली तो टिकट देना का सिलसिला शुरु हुआ! खचाखच भरी हुई बस में भी वो प्रत्येक आदमी के पास जाकर पूछता - कहा जाओगे और उससे पैसे लेकर उपर्युक्त पैसे काटकर बाकी पैसे वापस लोटाता! फिर कान के ऊपर से पेन निकाल कर टिकटों का रजिस्टर खोलकर अपने साइन कर फिर टिकट फाड़कर देता!
इतनी भीड़, इतनी गर्मी, में हिचकोले खाती हुई बस में भी वो अपना काम इतनी सफाई से करता कि मजाल है हिसाब में कोई गड़बड़ी हो जाए! भीड़ को चिरता हुआ बस में पीछे तक जाता और सभी को टिकट देता !
  कई बार टिकट के चक्कर में सवारीयो से झिक-झिक हो जाती फिर भी बिना परेशान हुए उन्हे बताता कि टिकट इतने का ही है इतने पैसे ही लगेंगे कई बार तो चिल्लाने कि नौबत आ जाती और कई बार तो बस रुक्वाकर उस यात्री को उतारना पड़ता! इतनी परेशानी झिक-झिक के बाद भी वो अपनी नौकरी को सच्चाई मन और लगन से करता !
                            सुबह से शाम तक बस कि भीड़ में स़फर करना यात्रियों को बस में बिठाना फिर उन्हें टिकट देना और उनकी झिक-झिक सुनना शायद यही उसकी दिनचर्या बन गयी थी और लगता था वो इसी से खुश है
सभी को टिकट देकर जब वो अपनी सीट पर आकर बैठ गया तब तक मेरी आँखें उसी को देखती रही! मुझसे रहा ना गया और मैं उसके पास चला गया! खचाखच भरि हुई बस में भीड़ को चीरते हुए बड़ी मुश्किल से मैं उसके पास पहुँचा तो ऐसा लगा जैसे मैंने कोइ बड़ा समुंदर पा किया हो! इतनी मशक्कत तो मैंने सुबह से शाम तक शायद कभी नहि कि जो वो बस कंडक्टर रोजाना सुबह से शाम तक करता रहता है फिर भी वो कभी किसी से शिकायत नही करता!
                         उसके पास जाकर जब मैंने उससे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है? तो वो मेरी तरफ़ एक टक घूर कर देखने लगा फिर कहा "प्रेम नारायण" उसका नाम सुनकर मेरे मन में विचार कौंध्ने लगे कि स्वयम इश्वर का नाम ही इसका नाम क्यू है! वो ईश्वर का बेटा है! जिसमे इतनी शक्ति है कि वो दिन भर इतनी मेह्नत करता है फिर भी थकता नही है! स्वय नारायण के नाम के आगे प्रेम लगा है जो नारायण से प्रेम करने को कह्ता है या नारायण स्वयम ही प्रेम का रुप है लेकिन बस में आने वाले सवार ना उससे प्रेम करते है ओर ना ही उसे नारायण समझते है उनके लिए तो वो बस एक कंडक्टर है जो उन्हें टिकट देगा! नारायण समझना ओर प्रेम करना तो दूर कि बात है शायद कोई भी उसका नाम ही नही जनता है और शायद इसिलिये जब मैंने उसका नाम पूछा तो वो मुझे घूर कर देखने लगा!
           मैं ये सब सोच ही रहा था कि उसने मुझसे पूछा अरे भाई कहो क्या काम है - क्या मेरी शिकायत करनी है, कर देना मेरी शिकायत मैं किसी से डरता नही ये कहते हुए वो चिल्लाने लगा! सभी सवरिया हम दोनों कि ओर देखने लगी!
            शायद उससे कभी किसी ने उसका नाम नही पूछा और आज जब मैंने उसका नाम पूछा तो उसने सोचा होगा कि मैं उसकी शिकायत करूँगा! फिर मैंने धीरे से उससे डरते हुए सहमी हुई आवाज़ में कहा क्या आप दिन-भर काम करते हुए थकते नही? वो मुस्कुरया और मुझे अपने पास बिठाया और पूछा कि तुम कौन हो? मैंने कहा मेरा नाम कुलदीप है! मैंने उससे कहा आपने मेरी बात का जवाब नही दिया! उसने कहा - थकान? कैसी थकान? ये तो मेरी जिंदगी है और जिंदगी से या जीने से भी कभी कोई थकता है भला!
 मैंने
पूछा - तो क्या आप इस नौकरी से खुश है?
उसने कहा - हा क्यो नही मैं इससे खुश हूँ इस नौकरी से मेरे घर का चुल्हा जलता है मेरे घरवालों का पेट भरता है मैं इस नौकरी से बहुत खुश हूँ
मैंने पूछा - तुम्हारि पगार कितनी है?
उसने कहा - मेरी पगार उतनी ही है जो मुझे खुशी दे सकती है और खुशी से बढ़कर इस दुनिया में कोई दौलत नही है
मैंने कहा - आपको नही लगता कि आपका काम ज्यादा मुसीबत भरा है
उसने कहा - मुसीबत भरा , इसमे मुसीबत ही क्या है सिर्फ़ टिकट ही तो देना होता है और यदि तुम्हे ये मुसीबत भरा लगता है तो वो इंसान ही क्या जो मुसीबत का सामना ना कर सके! मुसिबते ही तो इंसान को जीना सिखाती है!
               उस बस कंडक्टर कि बाते मुझे ऐसी लग रही थी जैसे कि मैं ये बाते किसी महात्मा के मुह से सुन रहा हूँ इतनी परेशानि और दिक्कत के बाव्जूद भी उसको इस नौकरी से और अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नही थी! मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि जिंदगी जीने का तरीका सीखे तो कोई इस इंसान से सीखे जो जिंदगी जी रहा है अपना कर्म करते हुए बिना कोई शिकायत किए!
             थोड़ी ही देर में राजगढ़ जाता है और फिर कंडक्टर आवाज़ लगाता है राजगढ़ कि सवारी उतर जाए और आगे कि सवारि बिठाने के लिए आवाज़ लगाने लग जाता है 



Wednesday, January 16, 2013

गालिब के राजगढ से रहे हैं रिश्‍ते


आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि उर्दू के महान शायर‍ मिर्जा गालिब का राजगढ से रिश्‍ता रहा है। मिर्जा गालिब के पिता अब्दुल्ला बेग अलवर रियासत में सिपहसालार थे। उनकी मौत 1802 ई में गढी के युद़ध में हो गई थी। इसके बाद गालिब परिवार को तत्कालीनराजा बख्तावर सिंह ने ताउम्र पेंशन देने की घोषणा की थी। मिर्जा गालिब को हर माह 150 रुपये पेंशन अलवर रियासत की ओर से भेजी जाती रही।

Monday, November 1, 2010

happy diwali

नमस्कार दोस्तों आज फिर इस ब्लॉग पर मैं आपके लिए हाजिर हु शायद ये ब्लॉग बनाने वाले तो इसे बनाकर भूल गए है मैं उनसे नम्र निवेदन करता हु की अपनी व्यस्त जिन्दगी से थोडा वक़्त निकालकर इस ब्लॉग पर भी कुछ लिख दिया करे, दोस्तों कुछ दिनों से मैं जो मूवी बनाने में व्यस्त था वो मूवी पूरी हो चुकी है, इस मूवी का नाम "राजू" है यह एक 4 मिनट 25 सेकंड की शोर्ट एनिमेशन मूवी है इसे आप अपने facebook पर देख सकते है इसे देखने के लिए मैं आपको लिंक बता देता हु इसका लिंक है :- http://www.facebook.com/video/video.php?v=171607082856226

आप इस मूवी को वोट भी कर सकते है इसे वोट करने के लिए http://www.facebook.com/maacindia

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आपका वोट इस मूवी को viewers Choice Award जीता सकता तो कृपया अपना अमूल्य वोट देने की कृपा करे



वैसे दिवाली आने वाली है तो आप सभी को मेरी और से दिवाली की हार्दिक शुभकामनाये दीपो का यह त्यौहार आपके लिए मंगलमय हो



"रमजान में राम दिवाली में अली

रमजान में राम दिवाली में अली

हो सबकी भली"



तो दोस्तों फिर मिलेगे कुछ और बाते करेंगे, खुदा हाफिज, शब्बा खैर , अलविदा, टाटा बाय बाय

Wednesday, August 18, 2010

राजगढ़

नमस्कार दोस्तों कैसे हो, आशा करता हू की अच्छे ही होंगे, बहुत दिन हो गए इस ब्लॉग पर कोई नयी पोस्ट पब्लिश नहीं हुई है इस व्यस्तता के चलते समय ही नहीं मिल पाता आज कई महीनो के बाद मैं छुट्टी पर हू वो भी इसलिए की ये शरीर थोडा धोखा दे गया और मैं बीमार हो गया इसलिए आज छुट्टी करनी पड़ी, वैसे मैं अपनी व्यस्तता का कारण बता देता हू, आजकल मैं एक movie बनाने में व्यस्त हू जिसके कारण सन्डे को भी काम करना पड़ता है, १५ अगस्त को भी छुट्टी नहीं मिल पायी जिसके कारण आप सब को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये नहीं दे पाया पर कोई नहीं देर आये दुरुस्त आये आप सभी को मेरी तरफ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये ,


कुछ दिन बाद रक्षाबंधन आने वाला है दोस्तों मैं आप सब को बता देना चाहता हू की रक्षाबंधन वाले दिन राजगढ़ में पतंगे उड़ाई जाती है इस दिन बहनों द्वारा अपने भाइयो की कलाइयो में राखी तो पूरे भारत में बाँधी जाती है लेकिन पतंगे शायद कुछ ही जगह हो जहा उडाई जाती है, यहाँ जयपुर में तो मकर सक्रांति पर उडाई जाती है, रक्षाबंधन वाले दिन बच्चो से लेकर बड़े तक सभी छतो पर चढ़कर पतंग बाजी का मजा लेते है

दोस्तों बारिश का मौसम है यहाँ जयपुर में तो अच्छी बारिश हो रही है लेकिन सुनने में आया है की राजगढ़ में बारिश कोई ख़ास अच्छी नहीं हुई है जब वहा बारिश होती है तो पहाड़ो से पानी झरने के रूप में बहता है बहुत खूबसूरत नज़ारे होते है बारिश के दिनों में राजगढ़ में

राजगढ़ में झरने नाम की एक जगह है जहा छोटे छोटे ४-५ कुंड है और एक बड़ा सा बाँध है जहा बरसात में पानी भर जाता है और लोग वहा पर घूमने के लिए आते है बरसात के दिनों में ये जगह एक अच्छा ख़ासा पिकनिक स्पोट बन जाता है हम भी दोस्तों के साथ वहा बहुत जाया करते थे और नहाते भी थे , दोस्तों मैंने तो तैरना भी वही सीखा था, ये सब लिखते लिखते मुझे राजगढ़ कि बहुत याद आ रही है और मै अपने बचपन कि यादो मे खो गया हु इसलिये अब ज्यादा भावनाओ मे ना बहते हुए  मै अपने शब्दो को विराम देता हु  तो दोस्तो फ़िर मिलेगे चलते चलते क्योकि हम है राहि प्यार के,
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन  कि शुभकामनाये

Wednesday, June 9, 2010

बदल रहा है अपना शहर भी

हर शहर समय के साथ बदलता है, बदलना भी चाहिए। दस साल के आसपास हो गए राजगढ छोडे हुए। कभी दो सप्‍ताह में कभी महीने में आना होता है। इस बार तीन महीने के बाद गया तो एक साथ बहुत सारे बदलाव दिखे।
स्‍टेशन से घर तक के रास्‍ते में यही सोच रहा था कि देखते देखते राजगढ कितना बदल गया है। स्‍टेशन पर एक दो तांगे दिख जाते थे उसकी जगह अब ऑटो ने ले ली है। पहले घोडे दिखते थे, तांगे में बैठने का सुकून अलग होता था।
दुकानों के साइन बोर्ड बदल गए। दीवारों पर लगे पोस्‍टर्स की जगह फलेक्‍स ने ले ली।
अपना सैलून जिस पर पापा के साथ अंगुली पकडकर जाते थे वह अब जनता हेयर डेसर डेसर से यश मेन्‍स पार्लर हो गया है। शायद जमाने का तकाजा है हेयर डेसर नाम शायद सूट नहीं करना। दुकानदार को भी शर्म आए और कटिंग कराने वाले ग्राहक को इसलिए नाम बदल दिया है, जमाने के साथ टेंडी।
गोल चक्‍कर पर जहां कचोरी वाले ही खडे रहते थे अब ठेलों पर छोले भटूरे, बर्गर, छाछ राबडी भी है।
दिनभर पानी देने वाले नल अब एक एक बूंद टपकने को तरस रहे हैं। जिन लोगों को कभी पानी भरते नहीं देखा वो पानी के लिए मशक्‍कत कर रहे थे। पहले शायद पानी भरना महिलाओं का काम था, जो किल्‍लत के कारण मशक्‍कत और जुगाड करने के लिए पुरुषों के हिस्‍से में आ गया है।
अभी तो घर पहुंचा ही था
सोचा इतने सारे बदलाव सुबह के पंद्रह मिनट के घर तक के सफर में देख लिए इन्‍हें ही लिख दिया जाए, काफी समय से इस ब्‍लॉग पर कोई एंटी नहीं हुई।
बाकी बाद में

Thursday, February 25, 2010

होली

दोस्तों आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये, होली आप सभी के जीवन में अपार खुशियाँ लाये और आपके जीवन को रंगीन बनाये !